लाचार इंसान
इंसान अपने आप को कितना ताकतवर समझता है न, वो सोचता है कि हम कुदरत से भी परे निकाल चुके हैं । आज एक न दिखने वाले जीव ने पूरे विश्व को अपनी हैसियत दिखा दी है । मैं बात कर रहा हूँ "कोराना वायरस " की जिसने आज पूरे विश्व को घुटने टेकने पर विवश कर दिया है । वैश्विक स्तर पर सबसे सक्तिशाली देश अमेरिकए भी इसके सामने असहाय । आज लोग घर में दुबके बैठे हैं , सड़कें, गालियां सुनी है आज मनुष्य के बनाए गाड़ियों कि पे पे और चें चें भी सुनाई नहीं दे रही कुछ दिनों के लिए पंछी की चहचहाट वातावरण में गुजेंगी कितना सुन्दर लगता है ये सब अभी , भीड़ भाड़ से पड़े एक शांत दुनियां।
इन सब चीजों को सोच के मैंने कुछ पंक्तियां लिखी है , समय मिले तो जरूर पढ़िएगा और अभी तो समय ही समय हैं:–
इंसानों के इस बस्ती में आज सन्नाटा छाया है ,
ख़ुद को ताकतवर समझने वाला इंसान आज घर में पंगु बना बैठा है ।
आसमान में आज पंछी जश्न मनाए फिरते हैं,
और उसकी आजादी छिनने वाले लोग घर में असहाय
दुबके बैठे हैं ।
ए खुद पर नाज़ करने वालों जरा अपनी औकात देख लो,
एक न दिखने वाले जीव ने तुम्हे अपनी औकात दिखाई है ।
आज इंसानी लाशों की कतार है, खुदी हुई कब्र भरमार है,
लाशें सड़कों पर बिछी है , इंसानी फितरत तो देखो उसे वो उठाने से कर रहा इनकार है ।
ये आपदा की ऐसी घड़ी आयी है , जिसने इंसानों को हैसियत अपनी दिखाई है , गुरूर मत कर अपने इस बड़े शरीर पर , क्योंकि तिनके ने तुम्हारी नौका डुबोई है ।
अद्भुत ये ऐसी लड़ाई है , ना तलवार से ना ही ढाल से रण जीती जानी है , दुबके रहे घर में ए लाचार यदि रंजीत तुम्हे कहलानी है ।
कविता के बारे में अपनी राय जरुर दे , कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करें।
#supportlockdown
घर में रहें , सुरक्षित रहें।
इन सब चीजों को सोच के मैंने कुछ पंक्तियां लिखी है , समय मिले तो जरूर पढ़िएगा और अभी तो समय ही समय हैं:–
इंसानों के इस बस्ती में आज सन्नाटा छाया है ,
ख़ुद को ताकतवर समझने वाला इंसान आज घर में पंगु बना बैठा है ।
आसमान में आज पंछी जश्न मनाए फिरते हैं,
और उसकी आजादी छिनने वाले लोग घर में असहाय
दुबके बैठे हैं ।
ए खुद पर नाज़ करने वालों जरा अपनी औकात देख लो,
एक न दिखने वाले जीव ने तुम्हे अपनी औकात दिखाई है ।
आज इंसानी लाशों की कतार है, खुदी हुई कब्र भरमार है,
लाशें सड़कों पर बिछी है , इंसानी फितरत तो देखो उसे वो उठाने से कर रहा इनकार है ।
ये आपदा की ऐसी घड़ी आयी है , जिसने इंसानों को हैसियत अपनी दिखाई है , गुरूर मत कर अपने इस बड़े शरीर पर , क्योंकि तिनके ने तुम्हारी नौका डुबोई है ।
अद्भुत ये ऐसी लड़ाई है , ना तलवार से ना ही ढाल से रण जीती जानी है , दुबके रहे घर में ए लाचार यदि रंजीत तुम्हे कहलानी है ।
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घर में रहें , सुरक्षित रहें।
Bhot jbarjast Bhai...
ReplyDeleteThanks biru
DeleteJkss bro👍 keep it up
DeleteThanks bro
DeleteNice poem ankit bhaiya
ReplyDeleteधन्यवाद भाई
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